संसार में दुःख का मुख्य कारण भय ही है, यही सब से बड़ा भ्रम है, यह भय हमारे दुःखों का कारण है, और यह निर्भीकता है जिससे क्षण भर में स्वर्ग प्राप्त होता है। अतएव, ‘उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।’
एक विचार लो; उसी विचार को अपना जीवन बनाओ – उसी का चिन्तन करो, उसी का स्वप्न देखो और उसीमें जीवन बिताओ। तुम्हारा मस्तिष्क, स्नायु, शरीर के सर्वाङ्ग उसीके विचार से पूर्ण रहें। दूसरे सारे विचार छोड़ दो। यही सिद्ध होने का उपाय है; और इसी उपाय से बड़े बड़े धर्मवीरों की उत्पत्ति हुई है। शेष सब तो बातें करने वाले यन्त्र मात्र है। यदि हम सचमुच स्वयं कृतार्थ होना और दूसरों का उद्धार करना चाहें, तो हमें गहराई तक जाना होगा।
सब से पहले हमें अपने देश की आध्यात्मिक और लौकिक शिक्षा का भार ग्रहण करना होगा। क्या तुम इस बात की सार्थकता को समझ रहें हो ? तुम्हें इस विषय पर सोचना-विचारना होगा, इस पर तर्क-वितर्क और आपस में परामर्श करना होगा, दिमाग लगाना होगा और अन्तः में उसे कार्य रूप में परिणत करना होगा। जबतक तुम यह काम पूरा नहीं करते हो, तब तक तुम्हारे देश का उद्धार होना असम्भव है।
प्राचीन काल में भारत में त्याग ही की विजय थी, अब भी भारत में इसे विजय प्राप्त करना है। यह त्याग भारत के आदर्शों में अब भी सर्वश्रेष्ठ और सर्वोच्च है। यह बुद्ध की भूमि, रामानुज की भूमि, रामकृष्ण की भूमि, त्याग की भूमि है।
धीरज धरो, न धन से काम होता है। न नाम से; न यश काम आता है, न विद्या; परम ही से सब कुछ होता है। चरित्र ही कठिनाइयों की संगीन दीवारें तोड़कर अपना रास्ता बना लेते है।
तुम यह न भूलना कि सारी शक्तियाँ तुम्हारे भीतर विद्यमान है, अतः उनका विकास अवश्य होगा।
जो भी तुमको शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक दृष्टि से दुर्बल बनाये उसे जहर की भाँति त्याग दो।
जो सत्य है, उसे साहसपूर्वक निर्भीक होकर लोगों से कहो–उससे किसी को कष्ट होता है या नहीं, इस ओर ध्यान मत दो। दुर्बलता को कभी प्रश्रय मत दो। सत्य की ज्योति ‘बुद्धिमान’ मनुष्यों के लिए यदि अत्यधिक मात्रा में प्रखर प्रतीत होती है, और उन्हें बहा ले जाती है, तो ले जाने दो; वे जितना शीघ्र बह जाएँ उतना अच्छा ही हैं।
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कर्तव्य के प्रति समर्पण भगवान की पूजा का उच्चतम रूप है।
मैं अपने देश से प्रेम करता हूँ; मैं तुम्हें और अधिक पतित और ज्यादा कमजोर नहीं देख सकता। अतएव तुम्हारे कल्याण के लिए, सत्य के लिए जिससे मेरी जाति और अधिक अवनत न हो जाय, इसलिए मैं जोर से चिल्लाकर कहने के लिए बाध्य हो रहा हूँ – बस ठहरो। अवनति की ओर और न बढ़ो – जहाँ तक गये हो, बस उतना ही काफी हो चुका। … उपनिषद् के सत्य तुम्हारे सामने हैं। इनका अवलम्बन करो, इनकी उपलब्धि कर इन्हें कार्य में परिणत करो। बस देखोगे, भारत का उद्धार निश्चित है।
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किसी से लड़ने झगड़ने की आवश्यकता नहीं है। अपना संदेशा दे दो तथा औरों को अपने अपने भाव लेकर रहने दो। सत्यमेव जयते नानृतम्  – “सत्य की ही जय होती है असत्य की नहीं”, तदा किं विवादेन – तब क्यों लड़ते हो ?
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धर्म  का रहस्य  तत्व  की  बातों  में  नहीं — बल्कि  आचरण  में  है ।  सत्चरित्र  होना एवं  सत्  कार्य  करना  इसमें  ही  समस्त  धर्म  है ।  जो  केवल  प्रभु   प्रभु  कहकर  रोता  चिल्लाता  है  वह  धार्मिक  नहीं  बल्कि जो  ईश्वर  की  इच्छानुसार   कार्य  करता  है  वही  ठीक  ठीक धार्मिक  है ।
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उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जायेl
  बाहरी स्वभाव केवल अंदरूनी स्वभाव का बड़ा रूप हैंl
 ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हमही हैं जो अपनी आँखों पर हाँथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार हैं।
 विश्व एक विशाल व्यायामशाला है जहाँ हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।
दिल और दिमाग के टकराव में दिल की सुनो।

शक्ति जीवन है, निर्बलता मृत्यु हैं। विस्तार जीवन है, संकुचन मृत्यु हैं। प्रेम जीवन है, द्वेष मृत्यु हैं।

एक समय में एक काम करो, और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ।


“जब तक जीना, तब तक सीखना” – अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक हैं।

जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भागवान पर विश्वास नहीं कर सकते।

जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं।

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 हम वो हैं जो हमें हमारी सोच ने बनाया है, इसलिए इस बात का धयान रखिये कि आप क्या सोचते हैं। शब्द गौण हैं। विचार रहते हैं, वे दूर तक यात्रा करते हैं ।

जसै तुम सोचते हो, वैसे ही बन जाओगे। खुद को निर्बल मानोगे तो निर्बल और सबल मानोगे तो सबल ही बन जाओगे।

कुछ मत पूछो, बदले में कुछ मत मांगो। जो देना है वो दो, वो तुम तक वापस आएगा, पर उसके बारे में अभी मत सोचो।

वेदान्त कोई पाप नहीं जानता, वो केवल त्रुटी जानता हैं। और वेदान्त कहता है कि सबसे बड़ी त्रुटी यह कहना है कि तुम कमजोर हो, तुम पापी हो, एक तुच्छ प्राणी हो, और तुम्हारे पास कोई शक्ति नहीं है और तुम ये-वो नहीं कर सकते।

किसी की निंदा ना करें। अगर आप मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं, तो ज़रुर बढाएं। अगर नहीं बढ़ा सकते, तो अपने हाथ जोड़िये, अपने भाइयों को आशीर्वाद दीजिये, और उन्हें उनके मार्ग पे जाने दीजिये।

सच्ची सफलता और आनंद का सबसे बड़ा रहस्य यह है- वह पुरुष या स्त्री जो बदले में कुछ नहीं मांगता। पूर्ण रूप से निःस्वार्थ व्यक्ति, सबसे सफल हैं।

एक विचार लो। उस विचार को अपना जीवन बना लो – उसके बारे में सोचो उसके सपने देखो, उस विचार को जियो। अपने मस्तिष्क, मांसपेशियों, नसों, शरीर के हर हिस्से को उस विचार में डूब जाने दो, और बाकी सभी विचार को किनारे रख दो। यही सफल होने का तरीका हैं।