२. पैगम्बर मुहम्मद साहब दुनिया में समता, बराबरी के सन्देश-वाहक थे – वे मानव जाति में, मुसलमानों में भातृ-भाव के प्रचारक थे। (७/१९१-९२)
३. पैगम्बर मुहम्मद साहब ने अपने जीवन के दृष्टान्त से यह दिखला दिया कि मुसलमान मात्र में सम्पूर्ण साम्य एवं भ्रातृ-भाव रहना चाहिए। उनके धर्म में जाति, मतामत, वर्ण, लिंग आदि पर आधारित भेदों के लिए कोई स्थान न था। तुर्किस्तान का सुल्तान अफ्रिका के बाजार से एक हब्शी गुलाम खरीदकर, उसे जंजीरों में बाँधकर अपने देश में ला सकता है। किन्तु यदि यही गुलाम इस्लाम को अपना ले और उपयुक्त गुणों से विभूषित हो, तो उसे तुर्की की शाहजादी से निकाह करने का भी हक़ मिल जाता है। मुसलमानों की इस उदारता के साथ जरा इस देश (अमेरिका) में हब्शियों (नीग्रो) एवं रेड इंडियन लोगों के प्रति किये जानेवाले घृणापूर्ण व्यवहार की तुलना तो करो। हिन्दू भी और क्या करते हैं? यदि तुम्हारे देश का कोई धर्म-प्रचारक (मिशनरी) भूलकर किसी ‘सनातनी’ हिन्दू के भोजन को स्पर्श कर ले, तो वह उसे अशुद्ध कहकर फेंक देगा। हमारा दर्शन उच्च और उदार होते हुए भी हमारा व्यवहार, हमारा आचार हमारी कितनी दुर्बलता का परिचायक है! किन्तु अन्य धर्मावलम्बियों की तुलना में हम इस दिशा में मुसलमानों को अत्यन्त प्रगतिशील पाते हैं। जाति या वर्ण का विचार न कर, सबके प्रति समान भाव – बन्धुभाव का प्रदर्शन – यही इस्लाम की महत्ता है, इसीमें उसकी श्रेष्ठता है। (७/१९२)
४. सब पुराने धर्मो के आज भी जीवित रहने से प्रमाणित होता है कि उन्होंने निश्चय ही उस उद्देश्य को अटूट रखा है। उनके भ्रान्त होने पर भी, उनमें विघ्न-बाधा होने पर भी, उनमें विवाद-विसंवाद होने पर भी, उनके ऊपर तरह तरह के अनुष्ठान और निर्दिष्ट प्रणाली की आवर्जनास्तूप के संचित होने पर भी, उनमें से प्रत्येक का हृदय स्वस्थ है – वह जीवंत हृदय की तरह स्पन्दित हो रहा है – धड़क रहा है। जो महान् उद्देश्य लेकर वे आये हैं, उनमें से एक को भी वे नहीं भूले। उस उद्देश्य का अध्ययन करना महत्त्वपूर्ण है। दृष्टान्तस्वरूप मुसलमान धर्म की बात लो। जैसे ही एक आदमी ने मुसलमान धर्म ग्रहण किया, सारे मुसलमानों ने उसकी पिछली बात को छोड़, उसे भाई कहकर छाती से लगा लिया। ऐसा कोई भी धर्म नहीं करता। यदि एक अमेरिकन आदिवासी मुसलमान हो जाय, तो तुर्की के सुलतान भी उसके साथ भोजन करने में आपत्ति न करेंगे और यदि वह शिक्षित और बुद्धिमान हो, तो राज-काज में भी कोई पद प्राप्त कर सकता है। परन्तु इस देश में मैंने एक भी ऐसा गिरजा नहीं देखा, जहाँ गोरे और काले पास पास घुटने टेककर प्रार्थना कर सकें। (३/१३५-३६)
५. इस्लाम धर्म अपने सब अनुयायियों को समभाव से देखता है। इसीसे तुम देखते हो कि मुसलमान धर्म की यह विशेषता और श्रेष्ठत्व है। (३/१३६)
६. मुसलमान अच्छे अच्छे पीरों-फ़क़िरों की पूजा करते हैं और नमाज के समय काबे की ओर मुँह करते हैं। यह सब देखकर जान पड़ता है कि धर्म-साधना की प्रथमावस्था में मनुष्यों को कुछ बाह्य अवलम्बनों की आवश्यकता पड़ती है। जिस समय मन खूब शुद्ध हो जाता है, उस समय सूक्ष्म से सूक्ष्म विषयों में चित्त एकाग्र करना सम्भव हो सकता है। (५/२५३)
७. हम लोगों के सम्मुख एक भ्रान्त वक्तव्य दिया गया है कि मुसलमानों का यह विश्वास है कि स्त्रियों के आत्मा नहीं होती है। मुझे यह कहने में बड़ा दुःख हो रहा है कि ईसाई लोगों में यह भ्रान्त धारणा बहुत पुरानी है और ऐसा जान पड़ता है कि वे इस भूल को पसन्द करते हैं। अब तुम जानते हो कि मैं मुसलमान नहीं हूँ, लेकिन फिर भी मुझे इस धर्म के अध्ययन का अवसर मिल चुका है और क़ुरान का एक शब्द भी यह नहीं कहता कि महिलाओं के आत्मा नहीं होती, वस्तुतः वह कहता है कि उनमें आत्मा होती है। (४/१४७)
८. इग्लैण्ड के पास हथियार है, सांसारिक समृद्धि है, वैसे ही जैसे उससे पहले हमारे मुसलमान विजेताओं के पास थी। फिर भी महान् अकबर व्यावहारिक रूप में हिन्दू हो गया था, शिक्षित मुसलमानों, सूफ़ियों को हिन्दुओं से अलग कर पाना बहुत कठिन है। वे गोमांस नहीं खाते और दूसरी बातों में भी उनका रहन-सहन हमारे समान है। हमारे विचार उनके विचारों में रम गये हैं।” (४/२३७)
९. वेदान्त मत की आध्यात्मिक उदारता ने इस्लाम धर्म पर अपना विशेष प्रभाव डाला था। भारत का इस्लाम धर्म संसार के अन्यान्य देशों के इस्लाम धर्म की अपेक्षा पूर्ण रूप से भिन्न है। जब दूसरे देशों के मुसलमान यहाँ आकर भारतीय मुसलमानों को फुसलाते हैं कि तुम विधर्मियों के साथ मिल जुलकर कैसे रहते हो, तभी अशिक्षित कट्टर मुसलमान उत्तेजित होकर दंगा-फ़साद मचाते हैं। (१०/३७७)
१०. चाहे हम उसे वेदान्त कहें या और किसी नाम से पुकारें, परन्तु सत्य तो यह है कि धर्म और विचार में अद्वैत ही अन्तिम शब्द है और केवल उसीके दृष्टिकोण से सब धर्मों और सम्प्रदायों को प्रेम से देखा जा सकता है। हमें विश्वास है कि भविष्य के प्रबुद्ध मानवी समाज का यही धर्म है। अन्य जातियों की अपेक्षा हिन्दुओं को यह श्रेय प्राप्त होगा कि उन्होंने इसकी सर्वप्रथम खोज की। इसका कारण यह है कि वे अरबी और हिब्रू दोनों जातियों से अधिक प्राचीन हैं। परन्तु साथ ही व्यावहारिक अद्वैतवाद का – जो समस्त मनुष्य-जाति को अपनी ही आत्मा का स्वरूप समझता है, तथा उसीके अनुकूल आचरण करता है – विकास हिन्दुओं में सार्वभौमिक भाव से होना अभी भी शेष है।
इसके विपरीत हमारा अनुभव यह है कि यदि किसी धर्म के अनुयायी व्यावहारिक जगत् के दैनिक कार्यों के क्षेत्र में, इस समानता को योग्य अंश में ला सके हैं तो वे इस्लाम और केवल इस्लाम के अनुयायी हैं। (६/४०५)
११. इसलिए हमें दृढ़ विश्वास है कि वेदान्त के सिद्धान्त कितने ही उदार और विलक्षण क्यों न हों परन्तु व्यावहारिक इस्लाम की सहायता के बिना, मनुष्य जाति के महान् जनसमूह के लिए वे मूल्यहीन हैं। (६/४०५)
१२. हमारी मातृभूमि के लिए इन दोनों विशाल मतों का सामंजस्य – हिन्दुत्व और इस्लाम – वेदान्ती बुद्धि और इस्लामी शरीर – यही एक आशा है। (६/४०५)
१३. मैं अपने मानस – चक्षु से भावी भारत की उस पूर्णावस्था को देखता हूँ, जिसका इस विप्लव और संघर्ष से तेजस्वी और अजेय रूप में वेदान्ती बुद्धि और इस्लामी शरीर के साथ उत्थान होगा। (६/४०६)